श्री कृष्ण जन्माष्टमी
श्री कृष्ण भगवान् विष्णु के आठवे अवतार जिनकी बाल लीलाओं और जीवन जीने की शिक्षा की छाप भारतीय संस्कृति पर अमिट हैं |
वे आये जब असमाजिक तत्व और शक्तियों ने अपनी सीमाएं लाँघ दी , उन्होंने अवतार लिया जब मानवता पर संकट आया , जब धर्म और अधर्म का संतुलन बिगड़ा , वे आये जब उनके द्वारा दिये हुए जीवन मूल्यों , संस्कृति और आदर्शो को भूलकर मानव किसी ऐसे रास्ते पर निकल पड़ता है जहाँ पतन निश्चित है | जीवन मूल्यों की रक्षा , मानव जीवन को उन्नति के शिखर तक ले जाने के लिए वे आये और इस धरती पर एक आदर्श जीवन का निर्वहन कर यह सिद्ध किया कि कर्मयोगी बनकर जीवन जीना संभव है |
यही कारण था की एक बार फिर भगवान् पृथ्वी पर कृष्ण रूप में धरती पर अवतरित हुए |
अष्टमी तिथि पर जन्म लेने के कारण आज का दिन श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है |
किन्तु क्या केवल श्री कृष्ण जन्म दिवस मना लेना ही पर्याप्त होगा| यदि सच में ही उन्हें पूजना है तो उनके द्वारा बताये गए जीवन मार्ग पर चलिए , गीता जैसे श्रेष्ठ ग्रन्थ को अपने जीवन में उतारिये फिर देखिये उसके बाद जीवन किसी बसंत की भाँति खिल उठेगा , उस आत्मिक आनंद की प्राप्ति होगी जो इस नश्वर संसार की किसी भी वस्तु को अनुभव करने से प्राप्त नहीं हो सकता |
श्री कृष्ण से हमें जीवन जीने की शिक्षा मिलती है , मानव जीवन का क्या उद्देश्य है इसकी शिक्षा मिलती है
श्री कृष्ण ने हमें यह बताया कि जीवन उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मोह और सांसारिक बंधनो का त्याग आवश्यक है और श्री कृष्ण ने यह सिद्ध भी किया कि मोह से बाहर निकलकर कर्तव्यों का पालन संभव है | उनके धरती पर अवतरण का उद्देश्य कंश के अत्याचारों से ब्रज भूमि को मुक्ति दिलाना था अतः समय आने पर उन्होंने अपने सखाओं और स्वजनों से विदा भी ली और कंश का वध भी किया | कंश वध के तुरंत बाद उनको और बलराम को शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरुकुल जाना पड़ा | सत्य तो यह है की वे अपने परिवार के पास कभी लम्बे समय तक रहे ही नहीं |
श्री कृष्ण एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे उन्होंने पांडवो को चक्रवर्ती बनाने और धरती का बोझ कम करने के लिए कूटनीति भी अपनायी चाहे वह फिर जरासंध के चंगुल से १०० राजाओ की रक्षा हो या स्वयं जरासंध का भीम द्वारा वध और फिर जरासंध के पुत्र को ही राजा बना देना यह कुशल राजनीति थी | चाहे वह फिर अर्जुन को चतुर्दिक यात्रा पर भेजना हो और आस पास के राजाओ से मैत्री संबंध बनाने के लिए प्रेरित करना हो |
कालयवन नाम शत्रु को पराजित करने के लिए उन्होंने रणछोड़ नाम भी स्वीकार किया वे जानते थे की उसे युद्ध में पराजित नहीं किया जा सकता तथा वह जरासंध का युद्ध में सहायता के लिए आया था |
उन्होंने यह सिद्ध किया की मानव कल्याण और अधर्म के विनाश के लिए नीति से काम लेना पड़े तो लेना चाहीये , किन्तु यह नीति स्वच्छ होनी चाहिए न कि निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए |
उन्होंने मानव को यह भी शिक्षा दी की कोई भी निर्णय भावनाओ में आकर न लिया जाये वरन चेतना की आँखे खुली रखकर लिए जाये , भावनाओ , क्रोध दुःख को कभी अपनी बुद्धि पर कभी हावी न होने दिया जाये , जो मनुष्य ज्ञान की ऊँगली पकड़कर चलता है उसे मोह बंधन कभी अपने वश में नहीं कर सकते | जीवन उद्देश्य की प्राप्ति में सबसे बड़ी रूकावट है |
इसी के साथ मैं आप सबको जन्माष्टमी की बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ की आपको यह लेख अच्छा लगेगा | आपको यह रचना पसंद आई तो इसे अधिक से अधिक शेयर कीजिये |
और इसी प्रकार की पौराणिक कथाओ के लिए हमारे ब्लॉग पर आते रहिये
नीचे हमारा blog address दिया हुआ है
https://everythingtoinfinite.blogspot.in/
श्री कृष्ण भगवान् विष्णु के आठवे अवतार जिनकी बाल लीलाओं और जीवन जीने की शिक्षा की छाप भारतीय संस्कृति पर अमिट हैं |
वे आये जब असमाजिक तत्व और शक्तियों ने अपनी सीमाएं लाँघ दी , उन्होंने अवतार लिया जब मानवता पर संकट आया , जब धर्म और अधर्म का संतुलन बिगड़ा , वे आये जब उनके द्वारा दिये हुए जीवन मूल्यों , संस्कृति और आदर्शो को भूलकर मानव किसी ऐसे रास्ते पर निकल पड़ता है जहाँ पतन निश्चित है | जीवन मूल्यों की रक्षा , मानव जीवन को उन्नति के शिखर तक ले जाने के लिए वे आये और इस धरती पर एक आदर्श जीवन का निर्वहन कर यह सिद्ध किया कि कर्मयोगी बनकर जीवन जीना संभव है |
यही कारण था की एक बार फिर भगवान् पृथ्वी पर कृष्ण रूप में धरती पर अवतरित हुए |
अष्टमी तिथि पर जन्म लेने के कारण आज का दिन श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है |
किन्तु क्या केवल श्री कृष्ण जन्म दिवस मना लेना ही पर्याप्त होगा| यदि सच में ही उन्हें पूजना है तो उनके द्वारा बताये गए जीवन मार्ग पर चलिए , गीता जैसे श्रेष्ठ ग्रन्थ को अपने जीवन में उतारिये फिर देखिये उसके बाद जीवन किसी बसंत की भाँति खिल उठेगा , उस आत्मिक आनंद की प्राप्ति होगी जो इस नश्वर संसार की किसी भी वस्तु को अनुभव करने से प्राप्त नहीं हो सकता |
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श्री कृष्ण ने हमें यह बताया कि जीवन उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मोह और सांसारिक बंधनो का त्याग आवश्यक है और श्री कृष्ण ने यह सिद्ध भी किया कि मोह से बाहर निकलकर कर्तव्यों का पालन संभव है | उनके धरती पर अवतरण का उद्देश्य कंश के अत्याचारों से ब्रज भूमि को मुक्ति दिलाना था अतः समय आने पर उन्होंने अपने सखाओं और स्वजनों से विदा भी ली और कंश का वध भी किया | कंश वध के तुरंत बाद उनको और बलराम को शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरुकुल जाना पड़ा | सत्य तो यह है की वे अपने परिवार के पास कभी लम्बे समय तक रहे ही नहीं |
श्री कृष्ण एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे उन्होंने पांडवो को चक्रवर्ती बनाने और धरती का बोझ कम करने के लिए कूटनीति भी अपनायी चाहे वह फिर जरासंध के चंगुल से १०० राजाओ की रक्षा हो या स्वयं जरासंध का भीम द्वारा वध और फिर जरासंध के पुत्र को ही राजा बना देना यह कुशल राजनीति थी | चाहे वह फिर अर्जुन को चतुर्दिक यात्रा पर भेजना हो और आस पास के राजाओ से मैत्री संबंध बनाने के लिए प्रेरित करना हो |
कालयवन नाम शत्रु को पराजित करने के लिए उन्होंने रणछोड़ नाम भी स्वीकार किया वे जानते थे की उसे युद्ध में पराजित नहीं किया जा सकता तथा वह जरासंध का युद्ध में सहायता के लिए आया था |
उन्होंने यह सिद्ध किया की मानव कल्याण और अधर्म के विनाश के लिए नीति से काम लेना पड़े तो लेना चाहीये , किन्तु यह नीति स्वच्छ होनी चाहिए न कि निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए |
उन्होंने मानव को यह भी शिक्षा दी की कोई भी निर्णय भावनाओ में आकर न लिया जाये वरन चेतना की आँखे खुली रखकर लिए जाये , भावनाओ , क्रोध दुःख को कभी अपनी बुद्धि पर कभी हावी न होने दिया जाये , जो मनुष्य ज्ञान की ऊँगली पकड़कर चलता है उसे मोह बंधन कभी अपने वश में नहीं कर सकते | जीवन उद्देश्य की प्राप्ति में सबसे बड़ी रूकावट है |
इसी के साथ मैं आप सबको जन्माष्टमी की बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ की आपको यह लेख अच्छा लगेगा | आपको यह रचना पसंद आई तो इसे अधिक से अधिक शेयर कीजिये |
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