शुक्राचार्य का छल , भगवान विष्णु की कूटनीति ?

क्या थी भगवान विष्णु की कूटनीति ?

भगवान् शिव से मानव कल्याण क उद्देश्य से दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने संजीवनी मंत्र पा लिया था 
एक बार जब देवताओ और असुरो के युद्ध में असुर  मारे जाने लगे तब शुक्राचार्य ने संजीवनी मंत्र के प्रयोग से असुरो को पुनः जीवित करने लगे इस प्रकार देवताओ की युद्ध में पराजय हुई 

सहायता के लिए देवता भगवान् विष्णु के पास गए | भगवान् विष्णु ने देवताओ से कहा कि
संजीवनी मंत्र से रक्षा का केवल एक उपाय है- अमृत 
अमृत पीने वाला सदा क लिए मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है और अमृत प्राप्ति के समुद्र का मंथन आवश्यक है और समद्र मंथन दानवो की सहायता के बिना नहीं किया जा सकता इसिलए हे देवराज आप दानवो से सहायता  की प्रार्थना कीजिये  , इस पर देवराज इंद्र ने भगवान् विष्णु से कहा कि अपने शत्रु से सहायता की प्रार्थना करना क्या हमारा अपमान नहीं होगा क्या  इस से हमारी जग हसाई नहीं होगी  तब भगवान् ने कहा कि 
हे देवराज इस समय आपका परम उद्देश्य और लक्ष्य अमृत प्राप्ति है अतः इस इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यदि शत्रु से भी सहायता लेनी पड़े तो संकोच नहीं करना चाहिए , यदि आप अपने अपमान और जग हसाई के विषय में ही सोचते रहे तो अपने लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर पाएंगे 
शत्रु से सहायता लेना भी रणनीति  का अंश है देवराज !

इस प्रकार देवताओ ने दानवो की सहायता से  समुद्र मंथन करके अमृत प्राप्त  किया 

हमें भी जीवन में इसी तरह राजनीती , कूटनीति , रणनीति करते हुए सफल होना चाहिए किन्तु  आवयशक है  यह कूटनीति स्वच्छ और मानव कल्याण के लिए होनी चाहिए अपने निहित स्वार्थो की पूर्ति के लिए नहीं अन्यथा यह कूटनीति नहीं छल कहलाएगा | 

ऐसे बहुत सरे उदाहरण हमें हमारे ग्रन्थ देते है जिससे जीवन को प्रगति के मार्ग पर ले जाया जा सकता है कित्नु आज के युग में इन ग्रन्थ को कोई महत्ता नहीं देता 
में आज के युवा से याह प्रार्थना करता हु की वे अपने जीवन को आध्यात्म की सहायता से उन्नति के शिखर तक ले जाये 

आशा करता हु आपको यह पोस्ट अच्छी लगेगी |   

Comments