क्यों कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण को रणछोड़ !

क्यों कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण को रणछोड़ 

एक बार यदुवंशियो पर कालयवन नाम के योद्धा ने आक्रमण किया उसे यह वरदान प्राप्त था कि उसे रणभूमि मे किसी अस्त्र शस्त्र से नहीं मारा जा सकेगा अतः उसके वध के लिए भगवान श्री कृष्ण ने   सोचा कि इसे तो केवल राजा मुचुकुन्द के द्वारा ही हराया जा सकता है |
हमारे लिए ये जानना आवश्यक है कि राजा मुचुकुन्द कौन थे ?

बहुत समय पहले इश्वाकु वंश मे राजा मुचुकुन्द हुए | एक बार उन्होने असुरो से युद्ध मे देवताओ की सहायता की थी उनकी सहायता से प्रसन्न होकर देवताओ ने उनसे कहा - राजन आपने हम लोगो की रक्षा के लिए बहुत श्रम और कष्ट उठाया है अब आप विश्राम कीजिये और आपकी जो इच्छा हो वह वर माँग लीजिये|  बहुत थके होने के कारण मुचुकुन्द ने  निद्रा का ही वर माँगा और वर पाकर वह पर्वत की गुफा मे जा कर सो गए | उस समय देवताओ ने यह कह दिया क़ि सोते समय जो मूर्ख आपको बीच में ही जगा देगा तो आपकी दृष्टि पड़ते ही वह उसी क्षण भस्म हो जायेगा |
भगवान कृष्ण तो अंतर्यामी थे उनसे  कोई बात कैसे छिपी रह सकती थी अतः जब कालयवन से युद्ध आरम्भ हुआ  तब वे रणभूमि छोड़कर भागने लगे वास्तव में यह उनकी युद्धनीति थी
और उस गुफा में पहुंच गए जहाँ राजा मुचुकुन्द विश्राम कर रहे थे  और कालयवन भी  उनका पीछा करते हुए उस गुफा में पहुंच गया और उस गुफा में किसी दूसरे मनुष्य को सोते हुए देखा तथा अहंकार में आकर उसने उन्हें लात मार दी | पैर की ठोकर लगने से राजा नींद से उठ पड़े और कालयवन को अपने सामने पाया  और इस प्रकार उठाये जाने से रुष्ट हो गए और उनकी दृष्टि पड़ते ही कालयवन क्षण भर में जलकर राख हो गया |

इस प्रकार रणभूमि छोड़ने की नीति के कारण ही भगवान कृष्ण
को  रणछोड़ कहा गया |

इस कहानी से हमें सीख यह मिलती है की जीवन उद्देश्य की प्राप्ति में कुछ क्षण ऐसे भी आते जहा आपको साहस के स्थान पर बुद्धि और कूटनीति का प्रयोग करना पड़ता है | श्री कृष्णा तो परब्रह्म थे यदि वे चाहते तो कालयवन को युद्ध में भी मृत्यु प्रदान कर सकते थे किन्तु उन्होंने मानव के लिए ये एक उदाहरण प्रस्तुत किया कि जीवन में समस्याएँ तो आयेंगी किन्तु  जीवन का सौंदर्य और मानव कि  उन्नति  भी इसी में है |


आशा करता हूँ  यह कहानी आपको प्रेरणा देगी | 

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