अपने से प्रबल शत्रु से सामना हो तो क्या करे ! apne se prabal shatru se samna ho to kya kare in Hindi
एक बार युधिष्ठिर ने अपने पितामह भीष्म से पूछा - हे भरत श्रेष्ठ ! राजा अपने से बल में सर्वथा बढ़े-चढ़े शत्रु के सामने कैसे टिक सकता है ?
भीष्म जी ने कहा - इस विषय में समुद्र और नदियों के संवादरूप प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया जाता है |
एक समय की बात है , सरिताओं के स्वामी समुद्र ने सरिताओं से अपने मन का संदेह इस प्रकार पूछा - 'नदियों ! मैं देखता हूँ , जब तुम लोगो में बाढ़ आती है तो बड़े बड़े वृक्षों को जड़-मूल और डालियो सहित उखाड़कर तुम अपने प्रवाह में बहा लाती हो , किन्तु उनमे बेंत का कोई पेड़ दिखाई नहीं देता | बेंत का शरीर तो नहीं के बराबर - बहुत पतला होता है , उसमे कुछ दम भी नहीं होता और वह तुम्हारे किनारे पर होता है फिर भी तुम उसे ला ना सकी ! क्या कारण है ? उसे कमजोर समझकर उपेक्षा तो नहीं कर देतीं ?
इस पर नदियों ने युक्तियुक्त, अर्थपूर्ण तथा दिल में बैठने वाली बात कही - नाथ ! वे वृक्ष अपने स्थान पर अकड़ कर खड़े रहते है , हमारे प्रबल प्रवाह के सामने सिर नहीं झुकाते , इस प्रतिकूल व्यव्हार के कारण ही उन्हें अपना स्थान छोड़ना पड़ता है | किन्तु बेंत नदी के वेग को देखकर झुक जाता है , वह समय के अनुसार बर्ताव करना जानता है अकड़कर कर खड़ा नहीं होता अतः अपने अनुकूल आचरण के कारण उसको स्थान छोड़कर यहाँ नहीं आना पड़ता | जो पौधे वृक्ष, लता आदि हवा और पानी के वेग से झुक जाते है तथा वेग शांत होने पर सिर उठाते है उनका कभी तिरस्कार नहीं होता |
भीष्म जी कहते है - युधिष्ठिर इसी प्रकार जो राजा बल बल में बढ़े-चढ़े तथा विनाश करने में समर्थ शत्रु के पहले वेग को सह नहीं लेता वह नष्ट हो जाता है | जो बुद्धिमान अपने तथा शत्रु के सार , असार , बल और पराक्रम जानकर उसके अनुसार बर्ताव करता है उसकी कभी पराजय नहीं होती | अतः जब शत्रु को बल में अपने से बढ़ा जानो तो विद्वान् पुरुष को बेंत की तरह नम्र हो जाना चाहिए | यही बुद्धिमानी का लक्षण है |
भीष्म जी ने कहा - इस विषय में समुद्र और नदियों के संवादरूप प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया जाता है |
एक समय की बात है , सरिताओं के स्वामी समुद्र ने सरिताओं से अपने मन का संदेह इस प्रकार पूछा - 'नदियों ! मैं देखता हूँ , जब तुम लोगो में बाढ़ आती है तो बड़े बड़े वृक्षों को जड़-मूल और डालियो सहित उखाड़कर तुम अपने प्रवाह में बहा लाती हो , किन्तु उनमे बेंत का कोई पेड़ दिखाई नहीं देता | बेंत का शरीर तो नहीं के बराबर - बहुत पतला होता है , उसमे कुछ दम भी नहीं होता और वह तुम्हारे किनारे पर होता है फिर भी तुम उसे ला ना सकी ! क्या कारण है ? उसे कमजोर समझकर उपेक्षा तो नहीं कर देतीं ?
इस पर नदियों ने युक्तियुक्त, अर्थपूर्ण तथा दिल में बैठने वाली बात कही - नाथ ! वे वृक्ष अपने स्थान पर अकड़ कर खड़े रहते है , हमारे प्रबल प्रवाह के सामने सिर नहीं झुकाते , इस प्रतिकूल व्यव्हार के कारण ही उन्हें अपना स्थान छोड़ना पड़ता है | किन्तु बेंत नदी के वेग को देखकर झुक जाता है , वह समय के अनुसार बर्ताव करना जानता है अकड़कर कर खड़ा नहीं होता अतः अपने अनुकूल आचरण के कारण उसको स्थान छोड़कर यहाँ नहीं आना पड़ता | जो पौधे वृक्ष, लता आदि हवा और पानी के वेग से झुक जाते है तथा वेग शांत होने पर सिर उठाते है उनका कभी तिरस्कार नहीं होता |
भीष्म जी कहते है - युधिष्ठिर इसी प्रकार जो राजा बल बल में बढ़े-चढ़े तथा विनाश करने में समर्थ शत्रु के पहले वेग को सह नहीं लेता वह नष्ट हो जाता है | जो बुद्धिमान अपने तथा शत्रु के सार , असार , बल और पराक्रम जानकर उसके अनुसार बर्ताव करता है उसकी कभी पराजय नहीं होती | अतः जब शत्रु को बल में अपने से बढ़ा जानो तो विद्वान् पुरुष को बेंत की तरह नम्र हो जाना चाहिए | यही बुद्धिमानी का लक्षण है |
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