महान योद्धा , महान धनुर्धर नर अवतार द्रोण शिष्य अर्जुन जिसने संसार के अनेक योद्धाओ को रणभूमि में पराजित किया आज हम उसी महान योद्धा के गुण और उनके जीवन की कुछ ऐसी घटनाओ के बारे में जानेंगे जो हमें प्रेरित करती है -
Hard work & Dedication अभ्यास - एक दिन जब अर्जुन भोजन कर रहे थे उसी समय तेज हवा के कारण दीपक बुझ गया तब उन्होंने अनुभव किया कि अंधकार में भी हाथ को बिना भटके मुँह के पास जाते देखकर उन्होंने समझ लिया कि निशाना लगाने के लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं है केवल अभ्यास की है| वे अँधेरे में बाण चलाने का अभ्यास करने लगे उनके परिश्रम को देखकर द्रोणाचार्य अत्यधिक प्रसन्न हुए और अर्जुन से कहा मै इसका प्रयास करूँगा कि तुम्हारे समान ओर कोई धनुर्धर न हो |
Concentration - एक बार द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों की परीक्षा लेनी चाही|
उन्होंने पक्षी रुपी यन्त्र को पेड़ पर लगाकर राजकुमारों से धनुष पर बाण चढ़ाने को कहा | उन्होंने पहले युधिष्ठिर को आज्ञा दी - युधिष्ठिर क्या तुम उस वृक्ष पर बैठे पक्षी को देख रहे हो तब युधिष्ठिर ने कहा हाँ मै देख रहा हूँ | द्रोण ने पूछा - क्या तुम इस वृक्ष को ,मुझे और अपने भाइयों को देख रहे हो "हाँ मै देख रहा हु - युधिष्ठिर बोले| द्रोणाचार्य ने कहा - धनुष रख दो तुम यह निशाना नहीं मार सकते इसके बाद उन्होंने दुर्योधन आदि राजकुमारों से भी यही प्रश्न किया तथा उन्होंने भी वही उत्तर दिया जो युधिष्ठिर ने दिया था | इसके बाद आचार्य ने अर्जुन को बुलाया तथा वही प्रश्न किया फिर अर्जुन ने उत्तर में कहा - आचार्य मुझे इस पक्षी के सिर के अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं दे रहा है | फिर अर्जुन ने बाण चलाकर पक्षी का सिर गिरा दिया |
If you want success you should adapt this quality of Arjuna. He didn't allow anything to distract his concentration from target.
अर्जुन के दस नाम तथा उनका अर्थ :
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If you want success you should adapt this quality of Arjuna. He didn't allow anything to distract his concentration from target.
अर्जुन के दस नाम तथा उनका अर्थ :
- धनञ्जय- सारे देशो को जीतकर उनसे धन लाकर धन ही के बीच में स्थित होने के कारन अर्जुन को धन्नजय भी कहा जाता है
- विजय- संग्राम में जाने के पश्चात वहाँ युद्धोन्मत शत्रुओं को जीते बिना नहीं लौटता हूँ इसलिए विजय हूँ
- श्वेतवाहन- रणभूमि में युद्ध करते समय मेरे रथ में सुनहरे साज वाले श्वेत अश्व जोते जाते है इसलिए श्वेतवाहन हूँ
- फाल्गुनी- मैंने उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र में दिन के समय हिमालय पर जन्म लिया था इसलिए लोग मुझे फाल्गुनी कहते है
- किरीटी- पहले बड़े-बड़े दानवो के साथ युद्ध करते समय इन्द्र ने मेरे सिर पर सूर्य के समान तेजस्वी किरीट पहनाया था , इसलिए मै किरीटी हूँ
- वीभत्सु- मै युद्ध करते समय कोई वीभत्स (भयानक) कर्म नहीं करता इसीलिए मै देवताओं और मनुष्यो में वीभत्सु नाम से प्रसिद्ध हूँ
- सव्यसांची-दोनों हाथो से बाण संधान करने में समर्थ होने के कारण लोग मुझे सव्यसांची कहते है
- अर्जुन-चारो ओर समुद्र पर्यन्त पृथ्वी पर मेरे जैसा शुद्ध वर्ण दुर्लभ है और मै शुद्ध कर्म ही करता हूँ इसीलिए लोग मुझे अर्जुन नाम से जानते है
- जिष्णु- मै दुर्लभ, दुर्जय , दमन करने वाला और इन्द्र का पुत्र हूँ इसलिए देवता और मनुष्यो में जिष्णु नाम से विख्यात हूँ
- कृष्ण- मेरा दसवाँ नाम कृष्ण पिताजी का रखा हुआ है , क्योंकि मै उज्जवल कृष्णवर्ण तथा लाड़ला बालक होने के कारण चित्त को आकर्षित करने वाला था |
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