भगवान् कृष्ण के प्रमुख नाम एवं उनके अर्थ
महाभारत में अर्जुन के पूछने पर श्री कृष्ण ने अपने नाम तथा उनके कारणों का वर्णन किया था -
महाभारत में अर्जुन के पूछने पर श्री कृष्ण ने अपने नाम तथा उनके कारणों का वर्णन किया था -
- नर (पुरुष) से उत्पन्न होने के कारण जल को नार कहते है, वह नार (जल) मेरा अयन (निवासस्थान) था इसलिए मै नारायण कहलाता हूँ..!
- मै ही सूर्य रूप धारण करके अपनी किरणों से सम्पूर्ण जगत को आच्छादित करता हूँ तथा मुझमे ही समस्त प्राणी निवास करते है , इसलिए मेरा नाम वासुदेव है..!
- मै सम्पूर्ण प्राणियों की गति और उत्पत्ति का स्थान हूँ , मैंने आकाश और पृथ्वी को व्याप्त कर रखा है , मेरी कांति सबसे बढ़कर है , समस्त प्राणी अंत में मुझे ही पाने की इच्छा रखते है तथा मै सबको आक्रांत करता हूँ इन्ही सब कारणों से लोग मुझे विष्णु कहते है..!
- मनुष्य इंद्रियसयं के द्वारा सिद्धि पाने की इच्छा करते हुए मुझे पाना चाहते है इसीलिए मै दामोदर कहलाता हूँ..!
- अन्न जल वेद और अमृत को पृश्नि कहते है , ये सदा मेरे गर्भ में रहते है अतः मेरा नाम पृश्निगर्भ है..!
- जगत को तपने वाले सूर्य और अग्नि तथा चंद्रमा की जो किरणे प्रकाशित होती है , वे मेरा केश कहलाती है उस केश से युक्त होने के कारण सर्वज्ञ विद्वान् मुझे केशव कहते है..!
- सूर्य और चंद्रमा मेरे नेत्र है और इनकी किरणे केश कहलाती है , ये दोनों जगत को शान्ति और ताप देकर हर्षित करते है इसीलिए हृषी कहे गए है तथा वे मेरे ही केश है इस कारण हृषीकेश कहलाता हूँ..!
- मेरे शरीर का रंग हरित (श्याम) है इसीलिए मुझे हरि कहते है..!
- पूर्वकाल में जब हिरण्याक्ष पृथ्वी को लेके रसातल में गया तो मैंने वाराह अवतार धारण करके पृथ्वी को वापस लाया था इसीलिए देवताओं ने मुझे गोविंद कहा..!
- मै जगत का साक्षी और सर्वव्यापक ईश्वर हूँ, देवता तथा असुर भी मेरे आदि, मध्य और अंत का कभी पता नहीं लगा पाते इसीलिए मै अनादि अमध्य और अनंत कहलाता हूँ..!
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