हैहय वंश में कार्तीवीर्य अर्जुन का जन्म हुआ था जिसने माहिष्मति नगरी बसाई थी , इनके पिता का नाम कार्तीवीर्य था अपने पिता के नाम पर ही इनका नाम कार्तीवीर्य अर्जुन पड़ा |
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राजा कार्तीवीर्य से अर्जुन की उत्पत्ति हुई थी जो सहस्त्र भुजाओं से युक्त हो ७ द्वीपों का राजा हुआ| उसने अकेले ही सूर्य के समान तेजस्वी रथ द्वारा सम्पूर्ण पृथ्वी को जीत लिया था| उसने कई वर्षो तक अत्यंत कठोर तपस्या करके दत्तात्रेयजी की आराधना की| दत्तात्रेयजी ने उसे कई वरदान दिए | पहले तो उसने युद्धकाल में
एक हज़ार भुजाएँ मांगी | युद्ध करते समय किसी योगीश्वर की भाँति उसकी एक सहस्त्र भुजाएँ प्रकट हो जाती थी| उसने द्वीप समुद्र और नगरों सहित पृथ्वी को कठोरतापूर्वक जीता | कार्तीवीर्य अर्जुन के यज्ञ में नारद नामक गंधर्व ने इस गाथा का गान किया - "अन्य राजा लोग यज्ञ , दान , तपस्या, पराक्रम और शास्त्र ज्ञान में कार्तीवीर्य अर्जुन की स्थिति को नहीं पहुँच सकते|" वह योगी था, इसीलिए सातों द्वीपों में ढाल, तलवार, धनुष बाण और रथ लिए सदा चारों ओर विचरता दिखाई देता था| वे वर्षा काल में समुद्र में जलक्रीड़ा करते समय अपनी भुजाओं से रोककर जल के वेग को पीछे की ओर लौटा देते थे |महासागर में जब वे अपनी सहस्रो भुजाएँ पटकते थे उस समय पातालनिवासी महादैत्य भय से छिप जाते थे ||
कार्तीवीर्य अर्जुन ने अभिमान से भरे हुए लंकापति रावण को अपने पाँच ही बाणो से मूर्छित करके धनुष की प्रत्यंचा से बाँध लिया और माहिष्मती में लाकर बंदी बना लिया | यह समाचार सुनकर महर्षि पुलत्स्य उनके पास गए | महर्षि के याचना करने पर उन्होंने रावण को मुक्त कर दिया था ||
कार्तीवीर्य अर्जुन की हजार भुजाओं में धारण किये हुए धनुषों की प्रत्यंचा का इतना घोर शब्द होता था , मानो प्रलयकालीन मेघ गरजते हो | अहो!
परशुराम जी का पराक्रम धन्य है , जिसने जिन्होंने सुवर्णमय तालवन के समान राजा कार्तीवीर्य की सहस्त्रो भुजाओं को काट डाला था ||
उन्होंने महर्षि वशिष्ठ का आश्रम जलाया था इसलिए उन्होंने ब्रह्मण द्वारा मारे जाने का शाप कार्तीवीर्य अर्जुन को दिया था | जमदग्नि नंदन महाबाहु परशुराम जो बलवान व प्रतापी है तेरा बलपूर्वक मान-मर्दन करके तेरी हजार भुजाओं को काट डालेंगे और तुझे मौत के घाट उतारेंगे , इस प्रकार महाप्रतापी कार्तीवीर्य अर्जुन मृत्यु को प्राप्त हुए ||
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