देवताओं और दानवो ने समुद्र मंथन के पश्चात् अमृत प्राप्त कर लिया था किन्तु दानव छल के द्वारा अमृत लेकर भाग गए तब सभी देवता भगवान् विष्णु के पास सहायता के लिए गए तब भगवान् विष्णु ने देवताओं को मुस्कुराते हुए कहा आप चिंता ना करे अमृत पर केवल देवताओं का अधिकार है और अमृत को आप सभी तक पहुंचना मेरा उत्तरदायित्व ||
यह कहकर भगवान् दानवों के पास पहुंचे तथा मोहिनी रूप धारण कर दानवो की सभा में गए | उनके उस रूप की सुंदरता देखकर सारे दानव उन पर मोहित हो गए तथा भगवान् की बातो में आकर देवताओं को भी अमृत पिलाने का वचन दे दिया ||
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जिस समय भगवान् देवताओं को अमृत पिला रहे थे तब उसी समय राहु दैत्य देवताओं का वेष बनाकर उनके बीच में आ बैठा और देवताओं के साथ उसने भी अमृत पी लिया किन्तु तत्क्षण चंद्रमा और सूर्य ने उसकी पोल खोल दी | अमृत पिलाते-पिलाते ही भगवान् ने अपने तीखी धार वाले सुदर्शन चक्र से उसका सर काट दिया | अमृत का संसर्ग न होने से उसका धड़ नीचे गिर गया परन्तु सिर अमर हो गया और ब्रह्मा जी ने उसे 'ग्रह' बना दिया|
वही राहु पूर्णिमा और अमावस्या को बैर भाव से सूर्य और चंद्रमा आक्रमण करता है
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