एक बार असुरों और देवताओ में घोर संग्राम हुआ | देवता असुरों के अनेकानेक शस्त्र -अस्त्रों से पीड़ित हो गए | वे सहायता के लिए भगवान् विष्णु के पास गए | प्रणाम करने पर भयभीत हुए देवों को देखकर श्री हरि ने पूछा - हे देवताओं ! क्या आपत्ति है जिससे संताप युक्त हो | देवता बोले - हे विष्णो !हम लोग दैत्यों से पराजित हुए आपकी शरण में आये है | हमारी रक्षा कीजिये | वे दैत्य देव वरदान के कारण वैष्णव रौद्र सौर , वायव्य आदि शास्त्रों से अवध्य है | पूर्व में त्रिपुरारी शिव ने जलंधर को मारने के लिए जो तीक्ष्ण चक्र का निर्माण किया था उन्ही से उनका वध संभव है अन्य शस्त्रो से नहीं |
विष्णु बोले - हे देवो ! त्रिपुरारी ने जो चक्र जलंधर के वध के लिए प्रयोग किया था उसी चक्र से दैत्यों को मारकर तुम्हारा संताप दूर कर दूंगा |
ऐसा कहकर विष्णु ने हिमालय पर्वत पर शिवलिंग की स्थापना की | श्री हरि विष्णु ने सहस्त्र नामों से भगवान् शिव की पूजा आरम्भ की | सहस्त्र नाम से पूजा करते समय प्रत्येक नाम पर कमल पुष्प से पूजन करने लगे और समिधा स्थापित कर अग्नि में सहस्त्र नाम से आहुति दी ||
शिव ने श्री हरि की परीक्षा लेने हेतु हजार कमलो में से एक कमल छिपा दिया | भगवान् विष्णु विचार करने लगे | एक कमल कम हो गया सो उन्होंने अपने अपने कमल रूपी नेत्र को ही निकाल कर शिव को अर्पण कर दिया | इस भाव से प्रसन्न होकर शिवजी अग्नि मंडल से प्रकट हुए उन्होंने कहा - हे जनार्दन ! मैंने आपके कार्य को जान लिया है आपको मै यह सुदर्शन चक्र प्रदान करता हूँ |
इसीलिए सुदर्शन चक्र पाने हेतु भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए श्री हरि ने अपना एक नेत्र उन्हें अर्पित कर दिया था
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